Friday, October 5, 2007

कुछ बिखरे से पल ...( Cambridge, न्यूज़ीलैंड )

आज फिर यादों के भंवर से कुछ धुंधली सी यादें आ रही हैं| कुछ उन पुराने दिनों कि यादें, जिन्हे या तो कुछ लोग कभी याद ही नही करना चाहते या फिर छुपाते हैं| हाँ, मेरी भी कुछ यादें हैं ऎसी|

मैं उन दिनों न्यूज़ीलैंड में था| अभी जिस लम्हे का मैं जिक्र करना चाह रहा हूँ, वो cambridge का है|

हम तीन लोग बैठे हुए थे, अर्वित, राजेश और मैं (मनु) | शायद कुछ अपने पुराने दिनों की यादें सुना रहे थे एक दूसरे को| वाह, क्या रात थी| हमने उस दिन ६ लीटर wine पी| और सुबह हमें खुद भी भरोसा नही हो रहा था कि हमने ऐसा किया|

पैसे कि कड़की चल रही थी| मैं खेती कर रहा था, मेरे जैसे कुछ पढे लिखे जवानों के साथ| और बस, इस से अच्छा और क्या माहौल हो सकता है| सब साथ में बैठ कर अपने पुराने दिनों को याद कर रहे थे, कुछ गजलों के साथ| बस, यकायक जो माहौल बना उन गजलों के साथ, पूछिये मत, हम भी उस बहाव में बहते चले गए| ना ही वक़्त हमें रोक रहा था और ना ही हमारा कोई इरादा था|

हम लोग उस दिन एक २ लीटर की wine की बोतल ले कर बैठे (wine दारु से सस्ती पड़ती थी)| अर्वित की engagement हुई थी| बस, एक नशा सा था उसे भी| राजेश की कुछ अच्छी-बुरी सी यादें थी| और बात करने को अच्छा सा माहौल और साथ में हमारी सस्ती सी wine थी|

हमे पता ही नही चल रहा था कि रात कैसे बीती जा रही है| बस, जहाँ २ लीटर से चले थे, चलते चलते कैसे और कब ६ लीटर पर पहुंच गए, ये तो मुझे भी नही मालूम। बातें तो कहीँ ना कहीँ, यादों कि गहराईयों में अब भी मौजूद हैं, पर उनको ना ही मैं खुद कुरेदना चाहता हूँ, ना ही मेरा ऐसा कोई इरादा है। कुछ अच्छे लम्हों का जिक्र अवश्य करूंगा।

......
.............

बीच का कुछ किस्सा बाद के लिए छोड़ रहा हूँ|
सुबह हुई, काम का वक़्त आ गया| भाई साहेब(हमारे काम के कर्ता-धर्ता) की तरफ से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे, पर कोई भी इस हालात में नही था की फ़ोन उठा कर उनका सामना कर सके। Finally हमने फ़ोन की तार ही निकाल कर फ़ोन को एक तरफ रख दिया| शायद कुछ देर की राहत थी ये, पर अभी अंत नही था। कुछ देर बाद ही दरवाज़े पर खट-खट शुरू हो गयी। सबको पता था कि ये भाई साहेब हैं, और कोई भी उठ कर दरवाज़ा नही खोल रहा था। बस बाहर वाले कमरे में अपने राजेश भाई सो रहे थे, और उन्होंने और सहन ना कर के दरवाज़ा खोल दिया। बस फिर क्या था, भाई साहब ने कहा और वो साथ चल दिए। अब आप लोग समझ ही सकते हैं कि एक आदमी जिसने २ लीटर wine पी है, उसकी क्या हालत हो सकती है। उस दिन सेब की picking करनी थी।

राजेश बाग़ में गया और सेब के पेड के साथ सीढ़ी लगा कर चढ़ गया। और जो उसने और भाई-साहब ने हमें बखान किया, अपनी कहानी का। बस आज तक हम लोग भूल नही पाए हैं उस को।

बाक़ी सभी लोगों ने सेब तोड़ कर अपनी टोकरीयाँ भर ली और राजेश जो एक पेड पर चढ़ा था, दोपहर हो गयी, उस से नीचे ही नहीं उतरा। हर सेब को सोच-२ कर तोड़ रहा था, अच्छे से देख-२ कर। और जैसे ऊपर चढा हुआ झूल रहा था। इतने में भाभी जी दोपहर का खाना ले कर आ गयी। और उन्होने जो आवाज़ दी, उसको नीचे आने के लिए। कि बस अब तो बहुत निहार लिया इस सेब को, तोड़ ले और नीचे आ जा। बस आज भी हँसी नही रूकती है।बस उसके बाद उस दिन वो दुबारा सेब के पेड पर नही चढ़ा। भाभी जी के साथ वापस घर आ गया।

यादें तो बहुत हैं, पर हाथों के लिखने की गति सोच के साथ नही चल सकती, शायद फिर कभी। पर क्या करूं, यादें तो आती हैं। लिखुंगा कभी। बहुत याद आती है उन दिनों की भी।