ग़ज़ल सुन रहा हूँ और साथ में एक आतिशी कविता पढ़ रहा हूँ|(http://anuragdhanda.blogspot.com/) दोनों का कोई combination नहीं है, पर अजनबी राह पर चलने की अब आदत सी हो चली है.. सो आज भी..
यहाँ ना किसी हसीना का जिक्र है और ना ही अभी ऐसी कोई तमन्ना है, पर सोच रहा हूँ कि मैं कब और कहाँ खो गया इस दुनिया की रवानगी में| किसी अंधी सी दौड़ का मैं भी बस एक घोडा सा बन कर रह गया हूँ| मेरे आस-पास भी बहुत कुछ ऐसा ही है| सब चले जा रहे हैं एक अजनबी सी राह पर, जिसका ना कोई छोर है और ना ठिकाना|
ऐ ज़िन्दगी.. जब तुझ से पड़ा मेरा वास्ता,
मुझे भी एक पल सोचना पड़ा,
आज जी लूँ तुझे कि कल का इंतज़ार करूँ|
पल-पल फिसले रेत की तरह तू,
जितनी करूँ पकड़ गहरी, उतनी न संभले तू..
आज ठहर जा ज़रा गलियों में मेरी,
तुझे जीना ज़रा मैं भी सिखा दूँ|
Friday, April 9, 2010
Friday, April 2, 2010
मय की मदहोशी..
इन पंक्तियों को सुबह मैंने अपने mailbox में पढ़ा.. mailed by Me only
No idea when I wrote them and mailed to myself last night :)
मय को क्यूँ.. तुम किये बदनाम जा रहे हो,
हकीकत ही तो है यही.. जो तुम बयान किये जा रहे हो|
Some more from another mail written last night..
बिछड़े यार अब पुराने हो चले, वक़्त ने कहा.. यादों का सहारा लो..
यादों ने कहा.. अब हम भी बेगाने हो चले...
No idea when I wrote them and mailed to myself last night :)
मय को क्यूँ.. तुम किये बदनाम जा रहे हो,
हकीकत ही तो है यही.. जो तुम बयान किये जा रहे हो|
Some more from another mail written last night..
बिछड़े यार अब पुराने हो चले, वक़्त ने कहा.. यादों का सहारा लो..
यादों ने कहा.. अब हम भी बेगाने हो चले...
ek shaam.. kuch naye doston ke saath
आज फिर बहुत दिनों बाद लिखने का लुत्फ़ उठा रहा हूँ,
कुछ नए दोस्तों की महफ़िल के जाम.. आज फिर बतला रहा हूँ|
नहीं बदला है बहुत कुछ, पर इतफ़ाक है कुछ ऐसा..
पुरानी कहानी.., फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ|
हुस्न था ना करीब मेरे, पर मदहोशी ने मुझे घेर लिया,
देखा था जिसे बरसों पहले, उस लम्हे ने फिर एक फेर लिया|
जिक्र करूँ मैं क्या उसका, जिसने देखने से भी मूंह फेर लिया
पलक झपकी कि गहरी परछाइयों ने मुझे घेर लिया||
आज फिर उस जिक्र का.. जिक्र किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
शाम निकली कुछ इस कद्र, मदहोश कर चली,
पुरानी यादों की कड़ी, फिर नए धागे में पिरो चली|
हुस्न की तारीफ.. बस किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
कुछ नए दोस्तों की महफ़िल के जाम.. आज फिर बतला रहा हूँ|
नहीं बदला है बहुत कुछ, पर इतफ़ाक है कुछ ऐसा..
पुरानी कहानी.., फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ|
हुस्न था ना करीब मेरे, पर मदहोशी ने मुझे घेर लिया,
देखा था जिसे बरसों पहले, उस लम्हे ने फिर एक फेर लिया|
जिक्र करूँ मैं क्या उसका, जिसने देखने से भी मूंह फेर लिया
पलक झपकी कि गहरी परछाइयों ने मुझे घेर लिया||
आज फिर उस जिक्र का.. जिक्र किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
शाम निकली कुछ इस कद्र, मदहोश कर चली,
पुरानी यादों की कड़ी, फिर नए धागे में पिरो चली|
हुस्न की तारीफ.. बस किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
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