Thursday, April 9, 2009

किट्टी नहीं रही | (31-03-2009)

किट्टी - एक प्यारी सी संगीनी|
जब ये अपना बचपन एक नए परिवार में बिता रही थी तो मैंने भी अपने विदेश के बचपन की यात्रा शुरू की थी| जब इसने अनजान से लोगों की अनजान सी भाषा को समझना शुरू किया था, तब मैंने भी मेरी मातृभाषा को अलविदा कह अंग्रेजी से दो-२ हाथ किये थे| मुझे अपने सफ़र की याद आज भी ताजा है, और आज जब किट्टी नहीं रही तो सोच रहा हूँ कि उसका सफ़र कैसा रहा होगा?

वो इंसान का एक जानवर के साथ बर्ताव, कभी जूठन तो कभी बासी खाना| क्या उसने कभी सोचा होगा कि एक नाज़ुक सा बचपन जहाँ एक माँ खूब सारा प्यार देती है, अच्छे से अच्छा खाना देती है, वहां उसे एक दूसरो की दी हुई मजबूर से ज़िन्दगी जीनी होगी? शायद उसके भी कुछ ख्वाब रहे होंगे, एक सुनहरी सी ज़िन्दगी के| पर आखिर ख्वाब तो ख्वाब होते हैं, कुछ पूरे और कुछ अधूरे से|

मेरी विदेश यात्रा का बचपन, एक उभरते हुए देश से एक अग्रणी देश का सफ़र| मेरी दास्ताँ भी किट्टी के बचपन से कुछ अलग नहीं, कुछ सुनहरे से सपनो को टूटते हुए मैंने भी देखा| कुछ पाया तो बहुत कुछ खोया भी| माँ के हाथ की चुपडी हुई रोटी से..... एक सूखी सी bread को मैंने भी चबाया| 

वो सर्द सी रातें, जब एक मोटी सी रजाई में भी ठण्ड के मारे हालत बुरी रहती थी, किट्टी का बाहर ठण्ड में सारी रात घर का पहरा देना| सच, उसने धीरे -२ सब का मन मोह लिया| फिर दिन कुछ ऐसे पलटे की वो सब की चहेती हो गयी|  सबने उसको अपना लिया| और शायद घर के उस एक इंसान की वो सबसे प्यारी हो गयी जिसने शुरू में उसका सबसे अधिक विरोध किया था| किट्टी को भी ताजा खाना मिलने लगा| सर्द रातों में सोने की लिए उसके लिए भी कुछ गर्म इंतजाम (बोरी) किये जाने लगे| कुल मिला कर, वो सभी की चहेती हो चली| 

एक बात जो मैं कभी नहीं भूलता, वो थी उसकी अपनों की पहचान| सालों बाद जब मैं अपने घर पहुंचा तो मुझे लगा की शायद अब तो मैं भी उसके लिए एक अनजान ही हूँ, पर पता नहीं कैसे, उसने मेरा उसी अपने पहचाने तरीके से स्वागत किया जैसे की मेरी उसके साथ बरसों की पहचान थी| या कहिये शायद एक की आपबीती ने दूसरे को दूर से ही पहचान लिया| उस समय वो मुझे एक इंसान से कहीं अधिक समझ वाली लगी, जिसने मुझ से ना कोई सवाल किये और न मेरे आने पे कोई ऐतराज़, बस एक प्यार भरा स्वागत|

काश मैं उसकी भाषा समझ पाता और उस से उसकी आपबीती पूछता और अपनी कहानी भी उसे बतला सकता| पर कुदरत ने बहुत सोच समझ कर सबकी भाषा को अलग-२ बनाया है| सबको अपनी कहानी खुद ही लिखने का अवसर दिया है|

अब वो अपना वक़्त पूरा कर एक नयी दुनिया की और जा चुकी है| शायद कुछ अच्छी और कुछ बुरी सी यादों के साथ| एक हमसफ़र का साथ हमसे छूट चला| तमन्नाएं थी की उस अपने एक प्यारे से साथी से पूछ पाता कि अनजान सफ़र की राह, वो मुश्किल सी पगडंडियाँ और वो छोटी सी राह के हमसफ़र, कैसा लगा उसे वो सब कुछ? और जाते हुए अपने साथी को अपनी इन आँखों से अलविदा कह पाता| काश आने वाले वक़्त में कभी कहीं अपने उस साथी से मुलाक़ात होगी, कुछ अजनबी और अनजान सी राहों पे| 

-एक छोटी सी राह का हमसफ़र|


Friday, April 3, 2009

सुख और आनंद

सुख और आनंद
शायद ये दोनों शब्द एक जैसे लगें..
पर नही.. दोनों में बहुत फर्क है.

सुख एक अभिलाषा है.. पर आनंद एक अनुभूति है..
शायद किसी को दुःख में भी आनंद की अनुभूति हो..

कुछ लोग शायद इसे समझ पाएं और कुछ लोग नहीं..

बस इतना ही..
:)