Thursday, August 5, 2010

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी ...

ज़िन्दगी की सच्चाई लिखना ना ही सब के बस की बात है और ना ही बहुत से लोग लिखते हैं| पर कभी -२ आप ऐसे मुकाम पर होते हो जहाँ ज़िन्दगी भी अपने सच के साथ सामने खड़ी होती है, और आप भी कुछ छुपाना नहीं चाहते..
ऐसा ही आज कुछ अपने दोस्तों के बारे में मैं भी लिख रहा हूँ..
स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से जॉब.. और जॉब के साथ ज़िन्दगी.. कुछ अलग नहीं है मेरी ज़िन्दगी एक आम इंसान से..
कुछ अलग है तो सिर्फ मेरी सोच और मेरी सोच के साथ जुडी कुछ यादें|
ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, पर कहीं ना नहीं मैं अपने सच को मुझ से नहीं छुपा पाया|
ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर मैंने अपने को अपने सच के साथ खड़ा पाया| ना किसी का बुरा किया और ना ही कभी करूँगा| पर कभी किसी से डरा भी नहीं(even from so called God), और बस आज भी जब मैं अपने बारे में सोचता हूँ तो हर तरीके से खुद से रूबरू होने में मुझे कभी तकलीफ नहीं होती|
रोज़ कुछ नए लोगों से मुलाक़ात होती है| कुछ अपनी नौकरी पर तो कुछ रास्ते के अनजाने चेहरे.. पर पता नहीं क्यूँ, बहुत से लोग मेरे बहुत करीब नहीं आ पाते तो.. बहुत से लोग दूर रहते हुए भी कभी जुदा नहीं हो पाते|