Thursday, December 30, 2010

एक सन्नाटा सा...

एक सन्नाटा सा छाया है हर तरफ..
लगता है अहम की लड़ाई है|

Saturday, November 13, 2010

ज़िन्दगी.. मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है|

ज़िन्दगी.. मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है..
हाँ.. सच, मैंने तुझे और सिर्फ तुझे देखा है||

तन्हा गुज़र गयी वो वक़्त की गहराईयाँ,
बयां कर गयी वो तन्हाईयाँ..
वक़्त गुजरेगा कब.. मुझे बतला..
मौत से पहले ज़िन्दगी, रही सिर्फ तेरी परछाईयाँ||

हाँ ज़िन्दगी.. इन परछाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है|

वक़्त ठहरता नहीं.. और रंगत बदल जाती है,
हल्की आहट भी तेरे जाने की.. मुझे थरथराती है|
ले जाना नहीं साथ कुछ, फिर भी इतना सब बटोर लिया,
खाली हाथ जाना है.. इस सच्चाई पर ना गौर किया|

हाँ ज़िन्दगी.. इन सच्चाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है||

Friday, October 1, 2010

Living the most unlivable life

It's been the utter truth to me that a life one is being living around me is most unlivable. Don't mistaken yourself by the enormous means of entertainment or fun, but purely the authenticity of one's in himself as being a pure human.

Friday, September 10, 2010

कुछ अजनबी से खयालात मेरे..

लेखनी वो मेरी, जब तुझे हम दिल की आह लिखा करते थे,
बेरुखी तेरी वो जब, हम दिल की तमन्ना बयाँ करते थे|
खो गयी वो भी अब कहीं वक़्त की गहराईयों में,
नज़र जो अब वो आयी उन तनहाईयों में..
समझ ना पाया था शायद मैं उन्हें तब.. वो जज्बात तेरे ..
होश खो देने को काफी थे वो.. बेरहम.. पर अफसलात तेरे||

एक अजनबी से यूँ.. मुलाक़ात तो ना होती|
लफ्ज़-बा-लफ्ज़.. तकरीरे हयात ना होती||
ग़र लफ्ज़ कुछ मिल जाते मुझे भी वाजिब..
बयां में मेरे... तकरारे गुमां ना होती||

Thursday, September 9, 2010

क्यूँ इसके फैसले हमें मंज़ूर हो गए.. क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए...

आज कुछ लिखना जैसे बहुत भारी पड़ रहा है| सच, सोचा ना था कि ज़िन्दगी इस कदर गुजरेगी| भरा -पूरा परिवार, अच्छी-खासी कमाई, पर कहीं कुछ है जो आज मुझ से छिन सा गया है| मन कि शान्ति.. दिल का चैन.. पता नहीं कौन सी दुनिया में जी रहा हूँ मैं| जब अपने होश खो देता हूँ तो शायद चैन की नींद सो लेता हूँ| इच्छा होती है कि जैसे कहीं जंगलों में चला जावूँ, जहाँ मुझ तक कोई ना पहुँच पाए| खुद से भी कहीं भागना चाह रहा हूँ.. पर किसी डर से नहीं, सिर्फ दो पल के चैन के लिए| शायद मैं कहीं खुद से ही डरने लगा हूँ| वक़्त की कमी है, ज़िम्मेदारी बहुत भारी हैं और इच्छाओं का कोई अंत नहीं| और हाँ शायद मुझ से शिकायतों की फेहरिस्त भी बहुत लम्बी है.. बहुत से लोगों की| वो कहते हैं कि मैं उन्हें वक़्त नहीं देता| अब उन्हें क्या कहूँ.. वक़्त की ही तो कमी है|
पता नहीं.. मैं बहुत समझदार हो गया हूँ.. या बहुत से नासमझ लोगों से घिरा हुआ हूँ, जिस कदर मैं चल रहा हूँ, कोई मुझे समझ नहीं पा रहा है| शायद मैं ही कहीं गलती कर रहा हूँ| सपनों की दुनिया की तेज दौड़ में दांव लगा बैठा हूँ.. और जीतने का इरादा रखता हूँ| सूखी नदिया के किनारे बैठ.. नैय्या की तमन्ना रखता हूँ| मुझे पता है.. जीत आसान नहीं, पर हारने का इरादा मैं भी नहीं रखता|
लिख कर भी जब कोई लिख ना पाए.. मजबूर जब कोई हो जाए|
वक़्त से भी तन्हाई में बतियाये.. बस वो ही तो.. जिंदगानी.. सिर्फ तुझ से बतलाये||

Thursday, August 5, 2010

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी ...

ज़िन्दगी की सच्चाई लिखना ना ही सब के बस की बात है और ना ही बहुत से लोग लिखते हैं| पर कभी -२ आप ऐसे मुकाम पर होते हो जहाँ ज़िन्दगी भी अपने सच के साथ सामने खड़ी होती है, और आप भी कुछ छुपाना नहीं चाहते..
ऐसा ही आज कुछ अपने दोस्तों के बारे में मैं भी लिख रहा हूँ..
स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से जॉब.. और जॉब के साथ ज़िन्दगी.. कुछ अलग नहीं है मेरी ज़िन्दगी एक आम इंसान से..
कुछ अलग है तो सिर्फ मेरी सोच और मेरी सोच के साथ जुडी कुछ यादें|
ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, पर कहीं ना नहीं मैं अपने सच को मुझ से नहीं छुपा पाया|
ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर मैंने अपने को अपने सच के साथ खड़ा पाया| ना किसी का बुरा किया और ना ही कभी करूँगा| पर कभी किसी से डरा भी नहीं(even from so called God), और बस आज भी जब मैं अपने बारे में सोचता हूँ तो हर तरीके से खुद से रूबरू होने में मुझे कभी तकलीफ नहीं होती|
रोज़ कुछ नए लोगों से मुलाक़ात होती है| कुछ अपनी नौकरी पर तो कुछ रास्ते के अनजाने चेहरे.. पर पता नहीं क्यूँ, बहुत से लोग मेरे बहुत करीब नहीं आ पाते तो.. बहुत से लोग दूर रहते हुए भी कभी जुदा नहीं हो पाते|

Saturday, June 12, 2010

कब तुझ से हम बेगाने हो चले..

कब तुझ से हम बेगाने हो चले,
ऐ मेरे मुल्क अब तो मुझे बता
तेरी गलियों से कब हम अनजाने हो चले|

सीख तुझ से ली मैंने हर कदम,
और अब वो कदम .. तेरे पैमाने पर अब बेमाने हो चले|
ऐ मेरे मुल्क अब तो मुझ को बता,
कब हम तुझ से अनजाने हो चले||

ना राह बदली और ना बदला मेरा वो ठिकाना,
ना लोग बदले और ना बदला वो ज़माना|
क्यूँ बदल गया मेरा मन इतना,
जो तुझ से हर मुकाम पर, बस एक सवाल कर चले,
क्यूँ ना हम तुझ से अब.. अनजाने हो चलें||

Friday, April 9, 2010

One abrupt moment..

ग़ज़ल सुन रहा हूँ और साथ में एक आतिशी कविता पढ़ रहा हूँ|(http://anuragdhanda.blogspot.com/) दोनों का कोई combination नहीं है, पर अजनबी राह पर चलने की अब आदत सी हो चली है.. सो आज भी..


यहाँ ना किसी हसीना का जिक्र है और ना ही अभी ऐसी कोई तमन्ना है, पर सोच रहा हूँ कि मैं कब और कहाँ खो गया इस दुनिया की रवानगी में| किसी अंधी सी दौड़ का मैं भी बस एक घोडा सा बन कर रह गया हूँ| मेरे आस-पास भी बहुत कुछ ऐसा ही है| सब चले जा रहे हैं एक अजनबी सी राह पर, जिसका ना कोई छोर है और ना ठिकाना|


ऐ ज़िन्दगी..  जब तुझ से पड़ा मेरा वास्ता,
मुझे भी एक पल सोचना पड़ा,
आज जी लूँ तुझे कि कल का इंतज़ार करूँ|


पल-पल फिसले रेत की तरह तू, 
जितनी करूँ पकड़ गहरी, उतनी न संभले तू..
आज ठहर जा ज़रा गलियों में मेरी,
तुझे जीना ज़रा मैं भी सिखा दूँ|



Friday, April 2, 2010

मय की मदहोशी..

इन पंक्तियों को सुबह मैंने अपने mailbox में पढ़ा.. mailed by Me only
No idea when I wrote them and mailed to myself last night :)

मय को क्यूँ.. तुम किये बदनाम जा रहे हो,
हकीकत ही तो है यही.. जो तुम बयान किये जा रहे हो|

Some more from another mail written last night..

बिछड़े यार अब पुराने हो चले, वक़्त ने कहा.. यादों का सहारा लो..
यादों ने कहा.. अब हम भी बेगाने हो चले...

ek shaam.. kuch naye doston ke saath

आज फिर बहुत दिनों बाद लिखने का लुत्फ़ उठा रहा हूँ,
कुछ नए दोस्तों की महफ़िल के जाम.. आज फिर बतला रहा हूँ|

नहीं बदला है बहुत कुछ, पर इतफ़ाक है कुछ ऐसा..
पुरानी कहानी.., फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ|

हुस्न था ना करीब मेरे, पर मदहोशी ने मुझे घेर लिया,
देखा था जिसे बरसों पहले, उस लम्हे ने फिर एक फेर लिया|
जिक्र करूँ मैं क्या उसका, जिसने देखने से भी मूंह फेर लिया
पलक झपकी कि गहरी परछाइयों ने मुझे घेर लिया||

आज फिर उस जिक्र का.. जिक्र किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||

शाम निकली कुछ इस कद्र, मदहोश कर चली,
पुरानी यादों की कड़ी, फिर नए धागे में पिरो चली|
हुस्न की तारीफ.. बस किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||