आज फिर बहुत दिनों बाद लिखने का लुत्फ़ उठा रहा हूँ,
कुछ नए दोस्तों की महफ़िल के जाम.. आज फिर बतला रहा हूँ|
नहीं बदला है बहुत कुछ, पर इतफ़ाक है कुछ ऐसा..
पुरानी कहानी.., फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ|
हुस्न था ना करीब मेरे, पर मदहोशी ने मुझे घेर लिया,
देखा था जिसे बरसों पहले, उस लम्हे ने फिर एक फेर लिया|
जिक्र करूँ मैं क्या उसका, जिसने देखने से भी मूंह फेर लिया
पलक झपकी कि गहरी परछाइयों ने मुझे घेर लिया||
आज फिर उस जिक्र का.. जिक्र किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
शाम निकली कुछ इस कद्र, मदहोश कर चली,
पुरानी यादों की कड़ी, फिर नए धागे में पिरो चली|
हुस्न की तारीफ.. बस किये जा रहा हूँ,
पुरानी कहानी... फिर नए जाम के नाम बतला रहा हूँ||
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