Monday, November 5, 2007

आख़िर सीटी बज गयी..

वैसे तो ये लम्हे कई बार याद आ चुके हैं। और ऐसे ही आज फिर पुराने दिनों कि कुछ यादें ताज़ा हो गयी। इन यादों ने भी खूब साथ निभाया है। भूलते हुए कई रिश्तों को इन यादों ने कई बार एक नयी जान दी है। वैसे तो ये यादें कभी ना भूलने वाली हैं, पर फिर भी सोचा कि इन यादों को यहाँ लिख कर हमेशा के लिए अमर कर दिया जाये।


ये किस्सा उन दिनों का है, जब मैं(मनु), जनाब(संजीत खोखर) के साथ Auckland में 4/3 Louvain Ave, Dominion Rd. में रहता था। हम लोग घर पर ही अपना खाना बना कर खाते थे। किसी का आटा बनाने का काम था तो किसी को बर्तन धोने थे। किसी ने सब्जी बनानी थी तो किसी ने रोटी(चपाती) बनाने की जिम्मेवारी ली हुई थी। हम चार लोग बहुत अच्छे दोस्त थे और ये काम आपस में मिल बाँट कर करते थे। चलिए अब इन चारों से भी आप का परिचय करवा दिया जाये। ज़नाब(संजीत) से तो आपका परिचय हो ही चुका है। अब मिलते हैं लठ से.. हा हा हा। ये हैं अपने हुड्डा साहब यानी की संदीप हुड्डा। और अब बारी आती है पाले हवलदार की। और हमारे बीच में हवलदार था दीपक बल्हारा। और चौथा यानी कि मैं खुद। अब मुझे पता नही ये लोग किसी नाम से बुलाते थे या सिर्फ मनु ही था।

अब देखते हैं कि उन दिनों कौन क्या कर रहा था। शुरुआत मुझ से ही करते हैं। तो मेरा काम था आता बनाना और रोटी सकने में मदद करना। हवालदार रोटी बेलने का काम संभाले हुए था। ज़नाब का काम सब्जी काटना और बनाना था तो लाथ की जिम्मेवारी बर्तन धोने और सब्जी में मदद करने की थी।


छुट्टी के दिन हम सब सुबह लेट उठ कर देर से खाना खाते थे। तो ऐसा ही कुछ वक्त था। और ज़नाब राजमा की सब्जी बना रहा था। हमारा चुल्हा (stove) electricity operated था। तो जब हम उसे चलाते हैं तो ये एकदम से पता नही चलता। तो सबको भूख लगी हुई थी। सभी सब्जी बन जाने के इंतज़ार में थे। और जब तक सब्जी बनाती, सभी लोग हाल में बैठ कर सिनेमा (tv) देखने लगे। तो ज़नाब राजमा को कुकर में डाल कर stove को on करके आ गया और हमारे साथ हाल में बैठ कर मूवी देखने लगा। पहले पहल तो किसी को कुछ ख़ास अहसास नही हुआ, पर बहुत देर हो चुकी थी और कुकर की सीटी नही बज रही थी। पर हर कोई इतना आलसी था कि सिर्फ खड़े होकर रसोई में देख नही सकता था कि क्या हो रहा है। शायद डेढ़ - दो घंटे बीत गये होंगे पर सीटी नही बजी और हम सब भी इतने ढीठ कि देख नही रहे थे कि क्या कारण है और सभी को बहुत जोर से भूख भी लगी हुई थी। और आख़िर में शायद सबने ज़नाब को ही उठाया और उसके बाद जो कारण सामने आया कि बस आज भी हँसी नही रूकती है। हमारे ज़नाब ने असल में कुकर को एक चूल्हे पर रख दिया था और जला (ignite, on) दुसरे चूल्हे को आये थे। अब पिछले २ घंटे से खाली चूल्हा जले जा रहा था और कुकर दुसरे बिना जले हुए चूल्हे पर रखा था और हम वहाँ हाल में बैठे हुए सीटी बजने का इंतज़ार कर रहे थे।



और इसके बाद हम लोग इतना हँसे कि बस पूछो मत। और कितने ही दिनों तक हम ज़नाब से confirm करवाते रहे कि अब कुकर सही चूल्हे पर रखा है या नही। और उस दिन हम लोगों ने खाने में सुबह तो atleast movie ही खायी।



और भी बहुत सारे कारनामे हैं ज़नाब के। इतने में ज़नाब कहाँ बस करने वाले थे। धीरे -२ समय मिलने पर उनका भी यहाँ जिक्र करूँगा।



बस चलते -२ इतना ही कहूँगा कि वो यादें आज भी बहुत हसीं हैं।