ज़िन्दगी.. मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है..
हाँ.. सच, मैंने तुझे और सिर्फ तुझे देखा है||
तन्हा गुज़र गयी वो वक़्त की गहराईयाँ,
बयां कर गयी वो तन्हाईयाँ..
वक़्त गुजरेगा कब.. मुझे बतला..
मौत से पहले ज़िन्दगी, रही सिर्फ तेरी परछाईयाँ||
हाँ ज़िन्दगी.. इन परछाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है|
वक़्त ठहरता नहीं.. और रंगत बदल जाती है,
हल्की आहट भी तेरे जाने की.. मुझे थरथराती है|
ले जाना नहीं साथ कुछ, फिर भी इतना सब बटोर लिया,
खाली हाथ जाना है.. इस सच्चाई पर ना गौर किया|
हाँ ज़िन्दगी.. इन सच्चाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है||
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4 comments:
बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
हाँ ज़िन्दगी.. इन सच्चाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है||
अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
बढ़िया भावपूर्ण रचना ....
सटीक ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति
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