Saturday, November 13, 2010

ज़िन्दगी.. मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है|

ज़िन्दगी.. मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है..
हाँ.. सच, मैंने तुझे और सिर्फ तुझे देखा है||

तन्हा गुज़र गयी वो वक़्त की गहराईयाँ,
बयां कर गयी वो तन्हाईयाँ..
वक़्त गुजरेगा कब.. मुझे बतला..
मौत से पहले ज़िन्दगी, रही सिर्फ तेरी परछाईयाँ||

हाँ ज़िन्दगी.. इन परछाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है|

वक़्त ठहरता नहीं.. और रंगत बदल जाती है,
हल्की आहट भी तेरे जाने की.. मुझे थरथराती है|
ले जाना नहीं साथ कुछ, फिर भी इतना सब बटोर लिया,
खाली हाथ जाना है.. इस सच्चाई पर ना गौर किया|

हाँ ज़िन्दगी.. इन सच्चाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है||

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना

संजय भास्‍कर said...

हाँ ज़िन्दगी.. इन सच्चाईयों में,
मैंने तुझे बहुत करीब से देखा है||
अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

समयचक्र said...

बढ़िया भावपूर्ण रचना ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति