एक अरसा बीत गया कुछ लिखे हुए, पर आज ख़ुद को रोक नही पा रहा हू कुछ लिखने के लिए। क्या करू, आज बेटी की याद ने कुछ इतना मजबूर कर दिया कि बस, अब दिन- रात एक सपना और एक परछाई, हाँ मेरी परछाई मुझे बार-२ कह रही है, ज़िन्दगी यहाँ भी है।
मुझे आज भी वो दिन याद है जब पहली बार मैंने अपनी परछाई, अपनी बेटी को देखा था, अपने हाथों से उसको छुवा था। एक नन्ही सी परी, ना सोचा था... ना ही वो कहीं ख्वाब में थी, पर एक कोई तो था जो आने वाला था। और जैसे ही मैंने उसे अपने हाथों में लिया... एक वो अहसास, जो शायद मैं अभी तक नही भूल पाया हू, मुझे आज भी कह रहा है, पापा मैं आपकी दुनिया में हू। एक नाज़ुक परी जैसे कहीं से उतर कर मेरे हाथों में आ गए हो, देख कर नज़र हटाने को मन नही कर रहा था।
कुछ दिन अपनी बेटी के साथ बिताने के बाद मुझे वापिस जाना पड़ा। मन नही कर रहा था, पर क्या करू मजबूरी थी और नौकरी के लिए जाना पड़ा। वक्त बीता और वो तीन महीने भी। मेरी बेटी मुझ से मिलने आ रही थी, एक अरसे बाद। पता नही कैसी होगी, एक छोटी सी परी।
सिडनी में:
आज तीन महीने बाद मैं अपनी बेटी को लेने एअरपोर्ट पहुँचा। बहुत देर से पहुँचा। और जब पहली बार उसको देखा तो बस, देखता ही रह गया। बहुत बदल गए थी उसकी सूरत। और उसकी अदाएं भी अब निराली थी। अब उसकी आवाज़ भी अब आस-पास के माहौल को गूंजा देने के लिए काफ़ी थी। आज मैं अपनी बेटी को हमेशा अपने पास रखने के लिए लेकर जा रहा था। और बस पूरे रास्ते उसकी सूरत देखने से जैसे मन ही नही भर रहा था। .....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment